अकमेहँदी(Lycium europaeum)

Lycium europaeum, जिसे यूरोपीय बॉक्सथॉर्न भी कहा जाता है, Solanaceae परिवार का एक पौधा है। इसे हिन्दी में अकमेहन्दी, अकमेन्दी, चीर-चीर । गुजराथी में- अटीमटी, कचुरो, कागमेन्दी । मरेठी में - गंगरो, गेंगट और लेटिन में- लायसीमय यूरोपीयम कहते हैं'। इस बनौषधि का उल्लेख आयुर्वेद तथा यूनानी ग्रंथों में नहीं पाया जाता ।

इसका क्षुप इतस्ततः फैला हुआ, हिन्दुस्तान के पश्चमीय प्रदेशों में खेतों की बाड़ों में, या रास्तों के बाजू से पथरीली जमीन या समुद्र के किनारे की रेतीली जमीन में बहुतायत से पाया जाता है। इसका क्षुप दूर से मेहन्दी जैसा दिखलाई पड़ता है। इसी से गुजराथी में कागमेन्दी और उसी का अपभ्रंश हिन्दी में अकमेन्दी नाम से यह पुकारा जाता है।

इसकी दो किस्में (Lycium Barbarum और Lycium Ruthen cum) उत्तर हिन्दुस्थान में पाई जाती हैं। वहाँ उन्हें कोहटोर, खिचर, खिट्सर, और किटसरम कहते हैं। कोहटोर विषैला है। इसके फल और डालियों के खाने से कई ऊँट मर गये हैं। यद्यपि ये बूटियाँ धतूरा के वर्ग (Solanaceae) की हैं, तथापि अकमेंहदी उतनी जहरीली नहीं है।

इसका क्षुप झांखर सा, ऊँचाई में ६ से १० फुट तक होता है। इसमें से अत्यधिक तीक्ष्ण गंध सी निकला करती है। इसकी मूल से जो नवीन अंकुर फूटते हैं वे बड़े सुन्दर दिखलाई देते हैं। मूल से जो शाखा निकलती है वही फिर स्वतन्त्र पौधा हो जाता है। वर्षा के बाद इसमें जो पल्लवी फुटती है, और यह पत्तों से लद जाता है तब दूर से बिलकुल मेंहदी के पौधा जैसा ही दृष्टिगोचर होता है ।

गुणधर्म –

इसका सर्वांग उपयोग में आता है। यह क्षोभक शोथ और कफ का नाशक तथा मादक है।

विशेषताएँ:

  • दिखावट: इसके पत्ते छोटे, संकरे और गहरे हरे रंग के होते हैं और इसमें छोटे, सफेद या हल्के गुलाबी रंग के नलिकाकार फूल लगते हैं। इसकी शाखाएँ कांटेदार होती हैं, जिसके कारण इसे कई जगहों पर प्राकृतिक बाड़ के रूप में उपयोग किया जाता है।

· पत्ते: छोटे छोटे कुछ लम्बे अन्तर अन्तर पर Alternate) फूटते हैं। कहीं कहीं से बहुत पत्ते एक स, भी निकलते हैं। ये पत्ते साधारण आकार प्रकार मेंहन्दी पत्र जैसे ही होते हैं ।

· फूल: श्वेत वर्ण वर्षा के अन्त तथा शीतकाल में आते हैं। इसकी गन्ध धतूरे के फल जैसी होती है।

  • फल: इसमें छोटे, चमकीले लाल रंग के फल लगते हैं, जो अन्य Lycium प्रजातियों (जैसे कि अधिक प्रसिद्ध गोजी बेरी, Lycium barbarum) के समान होते हैं।

   आकार में काली मिर्च के दाने जैसे प्रथम हरित वर्ण के पकने पर पीले, लाल या केसरिया वर्ण के तथा क्विचित् काले वर्ण के भी हो जाते हैं। फल के ऊपर काले वर्ण की सूक्ष्म नौंक सी होती है। गन्ध उग्र होती है तथा स्वाद में प्रथम मीठा, बाद में चरपरा लगता है। फज के अन्दर बहुत सूक्ष्म बीज होते हैं। ये बीज लाल वर्ण युक्त भूरे रङ्ग के चटपटे चटपटे होते हैं।

  • अनुकूलता: यह सूखे और खारे मिट्टी के प्रति काफी सहनशील है और आमतौर पर पथरीले और सूखे स्थानों में पाया जाता है।

उपयोग:

  • औषधीय उपयोग: पारंपरिक रूप से इसे लोक चिकित्सा में इसके एंटीऑक्सीडेंट और सूजनरोधी गुणों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके फलों का उपयोग पाचन और प्रतिरक्षा स्वास्थ्य के लिए पेय के रूप में किया जाता है।

  • मुख्य प्रयोग ग्रंथि तथा अपरिपक्व बड़े बड़े फोड़ो पर इसके पत्ते और मूल को पीस कर पुल्टिस बनाकर बांधने से वे पक कर फुट जाते है।

  • पारिस्थितिक उपयोग: इसकी घनी और कांटेदार संरचना इसे कटाव नियंत्रण और जंगली जीवों के लिए हेज़रो का निर्माण करने के लिए उपयुक्त बनाती है।

  • शोथ तथा त्वचा के विकार - इसके पत्ते, फूल और कच्चे फलों को सील पर खूब महीन पीसकर छोटी छोटी बड़ियाँ सी बना तिल के तेल में पकाने के बाद उस तेल को छान कर रख लेवें और इस से मालिश करें, जिसका बहुत लाभ होता है।

  • इसके कोमल पत्तो का शाक बनाकर शोथ रोगी को खिलाते हैं जो स्वादिष्ट भी होता है।